Monday 30 January 2012

मुंबई स्थित श्री प्रवीन सोनीजी के अदभूत अनुभव


पुज्य चितळेबाबा के साधकों के अनुभव
मुं
बई के श्री प्रवीन सोनीजी ने अपना कथन टेप किया उसका रुपांतरण प्रस्तूत कर रहे है....

Figure 1श्री. प्रवीन सोनीजी पुज्य चितळेबाबा के साथ
मित्रों,
म सब चितलेबाबा के साधक परिवार में से हैं। मुझे खुश़ी है कि आप सब को मैं मेरे विचार तथा अनुभव से अवगत कर रहा हूं।
बाबा से  प्रथम  भेंट
बात आसाम की है। कारोबार के संबंध में श्री. सुशील भाटियाजी से आसाम स्थित तिनसुखिया में मेरी दोस्ती हुई। उनके कहनेपर मैं कर्नल तिहोतियाजी से मिलने दिनजान नाम के आर्मी युनिट में गया था । वहां से हम बाबा (उन दिनों मैं उन्हे गुरुजी नाम से जानता था) को मिलने एयर फोर्स के कँम्प में पहुंचे थे। वह था फरवरी महिना। साल था 1995 । शुरू में तो मैं मिलने को इच्छुक नहीं था। फिर भी भाटियाजी के मनाने पर चला गया। पहली मुलाकात तीन चार घंटे चली । खुब बातें हुई। बड़ा अच्छा लगा। बाबा की एक बात तबसे अच्छी लगने लगी कि वे दूसरों के भले की बात हमेशा करते है। जेब भले खाली हो फिर भी दिल भरा है ऐसा लगा। जब वहांसे निकलने का समय हुआ तब पांव छूने की रीति से मैं जरा हिचकिचा गया। क्योंकि मातापिता के मैं सिवा किसी के पैर नहीं छूता था। कारण ये था कि मैं आर्य समाजी हूं। हमारे में मुर्तिपुजा तथा पांव छूना आदि अनेक कर्मकांडों की मान्यता नहीं है। फिर भी लगा के मेरा उनके साथ जुड़ाव है। पिता समान व्यक्ति हो सकते है। फिर कभी मिले या ना मिले।  
अब मैं मेरे परिवार की जानकारी दे दूं। मेरा नाम है प्रवीन, पत्नी का अनिता तथा हमारे बेटे का नाम है पंकज । मेरे पिताजी का नाम था जानकीदास तथा दादाजी का नाम मलावरम था। हम पार्टीशन के आसपास पाकिस्तान से मुंबई आए थे। हमारा परिवार बहुत बड़ा तथा एकठ्ठा था। मेरे दादाजी जिनका नाम मलवारम सोनी था, उस समय से नामी रईस थे। उनका कारोबार उन दिनों कराची तथा लाहौर में फलफूल रहा था, जो आजकल पाकिस्तान में है।
               ऐसे ही समय बीतता गया। फिर एक बार आसाम के श्री. सुशील भाटियाजी का बुलावा मई 1995 में आया, क्या चितलेबाबा को मिलने की इच्छा है? मुझे लगा कि आसाम में जाना है क्या फिर? उन्होंने कहा, नहीं, नही बाबा तो आजकल पुणें में आ गए हैं। तथा रिटायरमेंट के बाद शायद वहीं सेटल हो जाएंगे
तबसे फ़िर बाबा से जुड़ाव हो गया। मैं उन्हें तब से जानता हूं जब वे आसपास के घरों में किराए पर रहा करते थे और अनेक बार पानी भरते हुए देखकर बड़ा बुरा लगता था। फिर भी बाबा के चेहरे पर कभी शिकन का पता नहीं होता था। उन दिनों मैं पत्नी तथा पुत्र पंकज के साथ महिने में दो या कभी कभी तीन बार पुऩे आया करते थे।

पंकज के साथ का हादसा


इससे पहले बता दूं के चितले बाबाके काऱण उनके गुरू कै. काशीविश्वेश्वरजी से मेरा जुड़ाव बना तथा मेरी उनसे मुलाकात होती थी। ऐसेही एक बार...
शायद 2005 साल के ऑगस्ट का महीना होगा। चितले बाबा के जन्मगांव देऊलगावराजा होने के बाद हम (पु. काशीविश्वेश्वरनाथ) गुरूनाथजी से मिलने औरंगाबाद स्थित आश्रम में सुबह पहूंचे। तब उन्होंने अचानक कहा कि दिवाली से पहले कुत्ते को मार दो। हमने उन दिनों जर्मन शेपर्ड कुत्ता पाला था। उसे कैसे मार दें ऐसा सोचा था। शायद इसलिए उस बात पर हमने ज़ादा ग़ौर नहीं किया। उसी दौरान बातों बातों मे हम चार लोगों को खाने के लिए नाथजी आग्रह करने लगे । अब खाना कब बनेगा फिर वहांसे कब मुंबई पहुचेंगे ऐसे हम सोच रहे थे। फिर भी वहां की माताजी ने ऐसे खाना परोसा कि जैसे उन्हे हमारे आने की खबर पहले से थी। इसका राज़ पुछनेपर उन्होंने कहा, नाथजी ने आपके आनेसे पहले 4 लोगों का खाना बनाने के लिए कहा था और ऐसेही हमेशा होता है कि लोग बाद में आते हैं खाना पहले से तैयार रहता है
खैर, कुछ दिनों बाद दिवाली आई और अचानक पंकज को ब्रेन हैमरेज हुआ। एक तरफ डॉक्टरी इलाज़ चल रहा था और दुसरी तरफ हम चितलेबाबा के संपर्क में थे। तब बाबा ने कहा कि जहां तक मैं देखता हूं, एक कुत्ते का बाल पंकज के खाने में से उसके ब्रेन तक गया है । उसके कारण उसकी यह हालत हुई है। मेरी राय है की इस बाल की हकीकत डॉक्टरों के मशीनों में नही आएगी। फिर भी शांती रखो मैंने जालंधरनाथ बाबासे प्रार्थना की है। वे उसे जरूर ठीक करेंगे। आगे तीन हप्ते तक बाबा रात दिन हमारे सतत संपर्क में ऐसे थे की मानो पंकज उनका ही बेटा हो! इस के बाद बाबा के साथ हमारा जुड़ाव ज़ादा गह़रा हो गया।...
... और सच मानो, बाबा के कहने के अनुसार इलाज़ करने पर आज हमारा पंकज बिलकुल ठीक है! मानो वह हादसा उसके साथ हुआ ही नहीं था! तब याद आती है बाबा काशीविश्वेश्वरनाथजी ने जो कहा था – उनकी सलाह हम मानते तो शायद ऐसी परेशानी न आती!

कार ऐक्सिडेंट की अदभूत घटना


एक बार हम पुने से मुंबई जा रहे थे रात का समय था। उसपर जोरो की बारिश हो रही थी। कळंबोली के आसपास हमारी मारुती कार को एक बस ने ऐसी ठोकर दी के पुछो मत। हम तो बालबाल बच़ गए। पर मारुती कार नुकसान जरूर हुआ था।
उस रात में घूम रहे 2-3 गुंडों की हम पर बुरी नजर पडी। बाबा की प्रार्थना जोरों से चल रही थी । वे चले गए। फिर दुसरे आए। उनसे निपटे तो एक पंजाबी लड़का बाईकपर आया। हमसे पुछने लगा, क्या हुआ? कैसे हुआ?’ चलो में आपकी मदद करता हूं। कह कर उसने कार की चाबी लेकर कार शुरू की । कार ऐसे शुरू हुई मानो बंद हुई ही नहीं थी! फिर उसने मेरे बेटे से कहा की आप मेरी बाईक पर बैठो और हमारे पिछे-पिछे आते रहो। मैं पनवेल में रहता हूं और मेरा काम ही है कि ऐसे फंसे लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाना। आप चिंता मत करो । मेरे घर लेके चलता हूं । उसके घर पहूंचे, ऐसे रात के वक्त लोगों के साथ पति आए तो पत्नी का रुठा रुठासा बरताव कैसे होता है इसका अंदाज़ा आप अपने अनुभव से लगा सकते हो। लेकिन हम हैरान हुए जब हमारा स्वागत मुस्कुराते हुए हुआ। और उपर उसने ये भी कहा की कोई बात नही। ये हमारे पतिदेव अकसर लोगों के काम आते रहते हैं और ऐसी देरी हो जाती है। बाद में हम सोच रहे थे कि मानो याना  मानो ये बाबा की ही कृपा थी के उस रात पंजाबी लडका बाबा के आदेश पर हमारी रक्षा करने वहां आया था।
ऐसे बाबाजी के अदभूत किस्से कितने बताऊं उतने कम है। फिर भी ओक साहब ने मेरे से बिनती की तो उनके निवासपर ये बातें उन्होंने अपने मोबाईल पर टेप की और आप तक पहुंचाई है। मैं उनका धन्यवाद करता हूं।
लेखन काल - दत्त जयंती, 9 -10 दिसंबर 2011.